बुधवार, 20 जनवरी 2010

lucknow

वो हजरतगंज का समां, वो चौक की चाट,
वो मिनी महल की Ice Cream , वह उसमे थी कुछ बात,
वो राम आसरे की मिठाई, वो मधुर मिलन का दोसा,
वो Marksmen की पावभाजी और शर्मा का समोसा,
वो रिक्शा का सफर, वो नींबू पार्क की हवा,
वो बुद्धा पार्क की रौनक और दिलकुशा का समां,
वो January की कड़ाके की सर्दी, वो बारिशों के महीने,
वो गर्मी की छुट्टियाँ, जब छुटते थे पसीने,
वो होली की मस्ती, वो दोस्तों की टोली,
वो जनपथ का माहोल, वो गोमती की लहरें,
वो बोटक्लब का नज़ारा, वह उसके क्या कहने,
वो अमीनाबाद की गलियां, वो IT की ......,
वो नोवेल्टी की बालकनी और वो वाजपेयी की पूरियां,
वो Aryan का Chinese,वो Roverse का स्टाइल,
वो school की लाइफ, और वो कॉलेज की ज़िन्दगी,
वो national का रास्ता और वो कैंटीन की patties,
वो भूतनाथ की मार्केट, वो highway के ढाबे,
वो पुरनिया चौराहा, वो चारबाग स्टेशन………
इतना सब कह दिया पर दिल कहता है और भी कुछ कहूं,
ये शहर हैं मेरा अपना, जिसका नाम है.........
L U C K N O W

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