मंगलवार, 10 नवंबर 2009

स्वर्ण जयंती शहरी रोजगार योजना

मलिन बस्तियों की जल्दी ही सूरत और सीरत बदली-बदली नजर आएगी। भारत सरकार के शहरी आवास एवं गरीबी उपशमन मंत्रालय की ओर से इन बस्तियों में स्वर्ण जयंती शहरी रोजगार योजना को अब और भी प्रभावी रूप में लागू किया जाएगा। इसके लिए बस्तियों में सर्वेक्षण का काम शुरू हो गया है। बस्ती के बाशिंदों का बायोडाटा तैयार हो रहा है जिसके द्वारा झोपड़पंिट्टयों में रहने वाले लोगों की तस्वीर और तकदीर दोनों बदल जाएगी।बस्तियों में साक्षरता का प्रतिशत बेहद कम है। यही कारण है कि इन बस्तियों की हालत पहले जैसी ही है। यही हालत लगभग सभी शहरों की मलिन बस्तियों की है। इनकी रंगत बदलने के लिए भारत सरकार ने नए कदम उठाए हैं। पहले से चल रही स्वर्ण जयंती शहरी रोजगार योजना को अब और प्रभावी तरीके से लागू करने का निर्देश दिया गया है। यह योजना अब शहरी विकास मंत्रालय के अंतर्गत नहीं बल्कि शहरी आवास एवं गरीबी उपशमन मंत्रालय के तहत संचालित की जाएगी। अब इस योजना के तहत स्वरोजगार के लिए दो लाख रुपये कर्ज मिलेंगे। जबकि पहले मात्र पचास हजार रुपये ही मिलते थे। पहले इस कर्ज पर मात्र दस फीसदी की सब्सिडी थी अब उसे बढ़ाकर पंद्रह प्रतिशत कर दिया गया है। इसी तरह योजना के तहत गठित किए जाने वाले महिला समूहों में अब सिर्फ पांच सदस्य ही होंगे। पहले इसमें 10, 15 और 25 सदस्य होते थे। इसके कारण समूहों में बिखराव नहीं होगा तथा तेजी के साथ काम हो सकेगा। अब स्वरोजगार के लिए प्रशिक्षण किसी संस्थान अथवा कैंप में नहीं बल्कि मलिन बस्तियों में ही दिया जाएगा। स्किल डेवलपमेंट स्लम्स के लिए कम्प्यूटर, मोटर मैकेनिक, वेल्डिंग, मोबाइल रिपेयरिंग आदि टेक्निकल कार्यो की ट्रेनिंग दी जाती है। इस प्रशिक्षण के बाद ही स्वरोजगार शुरू किए जा सकेंगे। डूडा के परियोजना अधिकारी शैलेन्द्र भूषण ने बताया कि जिलाधिकारी राजीव अग्रवाल के निर्देश पर नागरिक सुरक्षा कोर और नगर निगम तथा स्थानीय निकाय को सर्वेक्षण के लिए लगाया गया है। सर्वे का काम इस माह के अंत तक पूरा हो जाएगा। इसके बाद से ही इन बस्तियों में योजना शुरू हो जाएगी।सोर्स -जागरण.कॉम

सोमवार, 9 नवंबर 2009

विषय और पढ़ाई

जब भी तुम्हें चोट लगती होगी, शुरू में काफी दर्द होता होगा, लेकिन धीरे-धीरे दर्द सहने की आदत हो जाती है और फिर उतना दर्द महसूस नहीं होता। कई बार ढेर सारे विषय और पढ़ाई देखकर तुम्हारे मन में घबड़ाहट होती होगी जैसे इनकी और आगे बढ़ते ही तुम जख्मी हो जाओगी, लेकिन धीरे-धीरे मन को कठोर बनाकर इनसे जूझने की ताकत आ जाती है। कहते हैं जब तक एक सैनिक के शरीर में लड़ाई के जख्म नहीं रहे उसका सैनिक जीवन अधूरा ही रहा। जिस मार्ग का अनुशरण करने का फैसला तुमने किया है, उसमें हमेशा कठिनाईयां, भय आदि पहले आते हैं और खुशियां धीरे-धीरे और बाद में। इसलिए इन सारे अनुभवों को कड़ी दवा की तरह पीते जाना चाहिए क्योंकि तुम्हारा मार्ग आगे बढ़ने के लिए है न कि केवल मुश्किलों को देखते रहने के लिए।

ज्ञान

शेर को देखकर जब सारे जानवर भागने लगते हैं तो उसे अपनी ताकत का अंदाजा हो जाता है कि वो एक शूरवीर है। लेकिन यह कैसा जंगल का राजा कि कोई भी स्वयं आकर उसका ग्रास नहीं बनता बल्कि उसे ही शिकार को थका कर पकड़ना और दबोचना होता है। इसलिए अगर तुम्हारे पास जो ज्ञान है वह समृद्व और ताकतवर होने पर भी जब तक लोगों के बीच सक्रिय नहीं होता तब तक उसकी महिमा को कोई स्वीकार नहीं करता है। इस ज्ञान को सक्रिय करना यानि कि उसे अच्छे कामों में लगाना ही उसे सक्रिय करने जैसा है।